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घुटन-घुटन भरी जिंदगी

कुमार किशन कीर्ति 07 Jul 2023 कहानियाँ समाजिक घुटन,निर्मला 14988 0 Hindi :: हिंदी

बरसात का महीना चल रहा था।बद्रीनाथ अपने दफ्तर से घर आए।देखा,जिस कमरे में वह रहते है, वहां एक कोने में पानी जमा हुआ था।थोड़ी देर पहले बरसात हुई थी।पत्नी निर्मला आंगन में चुपचाप बैठी हुई थी।
बद्रीनाथ ने पत्नी को आवाज देना सही नही समझा।क्या करते बुलाकर?झगड़ालू और चिड़चिड़ी स्वभाव की उनकी पत्नी थी।इस कारण,उन्होंने कपड़े बदला और झाड़ू लेकर कमरे में जमा पानी निकालने लगे।
इसी बीच उनकी पत्नी निर्मला आई,उन्हें सफाई करते देखी,तो चिल्लाकर बोली"मै क्या मर गई हूं जो आप यह काम कर रहे है?"
यह सुनकर जमा पानी को बाल्टी में रखते हुए बद्रीनाथ बोले"इस जमा पानी को क्या तुम नही देखी?सफाई क्यों नहीं हुई?"
यह सुनकर निर्मला बोली"आप छत की मरम्मत क्यों नहीं कर देते है?पानी जमा नहीं होगी?"
तब बद्रीनाथ खड़े हो गए,और निर्मला के निकट जाकर बोले"तुमसे मैंने कितनी बार कहा है की इस माह के अंत में मेरी तनख्वाह मिलेगी,तब तक इसी प्रकार से रहा करो।"
इतना कहकर वह पानी फेकने चले गए।निर्मला मन ही मन दांत पीसकर रह गई।बद्रीनाथ सुगर मिल में नौकरी करते थे।चार भाई _बहनों में सबसे छोटे थे।सभी की शादी हो चुकी थी।गांव में छुट्टी के समय जाते थे और फिर सभी से मुलाकात होती।
शहर में नौकरी करते हुए किराए के मकान में रहते थे।निर्मला स्वभाव से अच्छी नहीं थी।झगड़ालू होने के साथ_साथ वह अभद्र व्यवहार करती थी।इस कारण,बद्रीनाथ घुटन भरी जिंदगी जी रहे थे।
निर्मला आए दिन छोटी_छोटी बातों पर लड़ती रहती थी।वह अपने पति बद्रीनाथ से भी अच्छा व्यवहार नहीं करती थी।उसके पड़ोसी भी उससे अब दूर रहने लगे थे।
खैर,पानी फेकने के बाद उन्होंने हाथ_मुंह धोया और बरामदे में जाकर बैठ गए।थोड़ी देर के बाद निर्मला आई और चाय का कप सामने रखकर चली गई।बद्रीनाथ कुछ भी नहीं बोले।
रात को बद्रीनाथ खाना खा रहे थे।निर्मला सामने ही टेबल पर बैठी हुई थी।उस समय वह काफी गुस्से में नजर आ रही थी।
यह देखकर बद्रीनाथ बोले"क्या हुआ है निर्मला?तुम इतनी गुस्से में क्यों हो?"इतना सुनते ही निर्मला गुस्से से बोली"मेरे तो भाग्य ही फूट गए हैं,आपसे शादी करके।कौन सा सुख मुझे आपने दिया है?मेरी सहेलियों को जाकर देखिए,कितना आनंद से जीवन बीता रही है।"
यह सुनकर बद्रीनाथ को दुःख हुआ और आत्मग्लानि भी हुआ। ऐसी बातें तो निर्मला बहुत बार बोल चुकी थी।
खैर,उन्होंने खाया आराम से खाया।उठते वक्त बोले"निर्मला,मुझे अफसोस है की तुम मुझे समझ नहीं सकी हो। दुःख इस बात का है की मै तुमको किसी भी प्रकार से सुख नहीं दे सका।इस कारण, मैं तुमको कल हमेशा के लिए आजाद कर रहा हूं।"फिर वे वहां से चले गए।
निर्मला अपने पति का भाव नही समझ सकी।
दूसरे दिन बड़े ही आदर और प्रेम से उन्होंने अपनी पत्नी निर्मला को हमेशा के लिए उसके मायका भेज दिया।
इस घुटन भरी जिंदगी से उन्होंने बड़े ही आराम से छुटकारा पा लिया।

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