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आगे निकलने का

संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मेरी इस कविता को पढ़कर पाठक गण अवश्य ही लाभान्वित होंगें। 14453 0 Hindi :: हिंदी

लगता है निराश हो गया है,
कुछ तो वजह होगी?
खैर छोड़ो कोई बात नहीं।
लगता है कुछ ज्यादा ही,
मगरुर हो, नहीं तो,
तुम्हें भी पत्ता होता,
अब क्या करना चाहिए?
निराशा की जो भूख है,
व तो तुम्हीं जैसे होते हैं।
और निराशा रूपी दैत्य,
तुझे भक्षण कर,
अपना भूख मिटाता,
चला आ रहा है।
वाह रे वाह दुनिया,
और इस दुनिया के,
सुगंधित और सुन्दर_सुन्दर,
मानव रूपी फूल।
कुछ चंद लोगों को छोड़कर,
बांकी सब तो ऐसे ही,
जिये जा रहे हो।
कुछ चंद लोग जो कि,
मसीहा बने हुए हैं।
तुम_हम उसके और,
आशा लगाए रहते हैं।
ख्याल तो जरूर आता होगा,
आगे निकलने का।
क्या नहीं आता है?
नहीं आता है तो,
मतलब साफ है,
तुम सब कुछ समझते हो।
अगर ख्याल आता है,
तो तुममें समझदारी है।
समझदारी है तो,
उसका प्रयोग भी करेंगें।
और निराशा रूपी दैत्य,
को समाप्त कर,
आशा रूपी शक्ति के साथ,
आगे बढ़ने के होड़ में,
सतत लगे रहना है।
संदीप कुमार सिंह ✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार 

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