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जग के माया जाल

संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक लोगों के लिए प्रेरणा से भरपूर मेरी कविता जिसका शीर्षक ऊपर दिया हुआ है। 6049 0 Hindi :: हिंदी

जग के माया जाल में, सभी लगे हैं आज।
सुख सुविधा के खोज में, भरते हैं परवाज।।

जग के माया जाल का,लम्बी है दास्तान।
सदियों से उलझे सभी,कोई नहीं निदान।।

जग के माया जाल से,जो निकले सो श्रेष्ठ।
जो जो इसमें हैं लगे, वह भी हैं प्रभु प्रेष्ठ।।

जग के माया जाल को,करते हैं स्वीकार।
होते नहीं समान मन,खोजे सब अधिकार।।

जग के माया जाल जो, मनुज समझते यार।
रहे नहीं तकरार से,सबसे रखे व्यव्हार।।
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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