Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक स्वाभिमान 47577 0 Hindi :: हिंदी
हम न किसी से कम। बस, लगाओ दम। हिम्मत की क़ीमत, क़ीमत ज़िद्दी विचार में। अंदर से जगानी पड़ती, नहीं मिलती हाट बाज़ार में। हुकूमत उनकी ही थी, है, रहेगी इस संसार में। लोग खेत सोना उपजाते, जो मोती उपजाएं थार में। मज़बूत बनों, खुद की सुनों, मत भरो पराई चिलम। बस, लगाओ दम। टांग नहीं, हाथ पकड़ आगे बढ़ो। ठेके की नहीं, स्कूल की देहरी चढ़ो। सांकल- संहिता नहीं, संविधान पढ़ो। हक़ के लिए मरो, मारो, हक़ के लिए लड़ो। छोड़ो थैली, छोड़ो रम। बस, लगाओ दम। हम न किसी से कम। बस, लगाओ दम। उस वंश के वंशज, रगों में धर्मदान व जंग। मन था चंगा, उर्मि कठौती में गंग। रविदास -सा चढ़ न सका, भक्ति का दूजा रंग। खुद की पहचान, खुद के इतिहास को, खुद ही लगा ली ज़ंग। दब्बू मिसल, असल नसल की, नसों में जाएगी रम। बस, लगाओ दम। जो एक बार डरा, वह हमेशा डरता है। दब -दबके जीने वाला, दिन में दस दफ़ा मरता है। ज़िंदा हो तो ज़िंदा दिखो, समाज तसद़ीक चाहता है। वैसे तो पशु भी विचरण, प्रजनन व पेट भरता है। दुनिया दिखते को मानती, दिखाओ ज़िंदा हैं हम। बस, लगाओ दम। हम न किसी से कम। बस, लगाओ दम।