Santosh kumar koli 29 Jul 2023 कविताएँ धार्मिक चक्रव्यूह में अभिमन्यु (भाग 2) 6078 0 Hindi :: हिंदी
वह वीर लड़ा, न तनिक डिगा, सबको दिया, जो जिसके हिस्से है। जो लिया वही जान गया, ये अर्जुन सुत, वासुदेव का शिष्य है। बाण मूठा का मूठा, झट रथ टूटा, रथी धड़ाम धरा पर गिरा। निस्सरण है निस्सार, निहनन है स्वीकार, निहंग, निहत्था अरि से घिरा। हुए वार पर वार, रक्त की धार, तोड़ चकली रथ चक्र उठा लिया। दिखा दिया अपनी -अपनी राशि, सिर है बीच संडसी, ताक़ ताक़त दिखा दिया। सैफ़ झेला क़फ, कायर गए झंप कायल हुई करवीर। रक्त टपक रज में मिला, घुसी असि उर, उदर को चीर। देख विकट, वीभत्स मंजर, धरणी को जननी होने पर रोना आ गया। जन्म लेते ही इनको, काल बली क्यों नहीं खा गया। धरती मां ने अपने लाल को, अपनी गोद में भर लिया। कह अलविदा सदा के लिए, अभिमन्यु सिर मां अंचल में धर दिया। नियति स्तब्ध, क्या लब्ध, धराधर की काया डोल गई। सूर्य, चंद्र गए ठहर, ठहरी जल की लहर, सुरलोक की कलोल गई। अभिमन्यु चीत्कार एक प्रश्नावली छोड़, इतिहास गई मोड़, क्या कोई युग जवाब दे पाएगा। क्या इस धरा पर फिर से, कोई अभिमन्यु जन्म ले पाएगा। कर्ण सोचा मन में, मेरे अर्जुन के बीच, ये कहां से आ गया। हमको करके निहत्था, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर का ताज पा गया। लिखकर अमर गाथा, आत्मा अमरलोक सिधार गई। भागे इंद्र आसन छोड़, पीछे देवगण रहे दौड़, वाह! वाह ! की जयकार हुई।