Jyoti yadav 10 Jan 2024 कविताएँ समाजिक ऐसी ख्वाहिश है 7417 0 Hindi :: हिंदी
मै परिंदा बेखबर उङू उम्र भर ऐसी ख्वाहिश ए तमन्ना है दुर हो गम दर्द सारे ना हो फिक्र कोई हस्ते मुस्कुराते हुए जीना है खिला खिला गुलशन हो खिली खिली वांदिया हो ना बंदिश कोई रहे हर पल आजादियां बसंत बहार काली घटा दुआ दे सुरज चंदा ए हवा मुकम्मल हो जहां आसमान भी करे हमसे वफा ज्योति यादव के कलम से गाजीपुर उत्तर