PURUSHARTH DEWANGAN 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य दूर कितना भी हो किनारा लेकिन उम्मीद अब भी मेरे पास है 13008 1 5 Hindi :: हिंदी
काश! समंदर के बीच कहीं खो जाता, ना किनारे की उम्मीद ना मंजिल की, बस लहरें जहां ले जाए वही चलता जाता, आश जैसे खत्म हो गई, वैसी ये घड़ी आई है , ना अंत, ना शुरुआत है, कैसी काली घटा छाई है, चाहता हूं, तूफान आए, और मुझे जल्दी किनारे ले जाए, . . अब बेसबर सा हो गया हूं मैं, सोचता हूं, कहां और क्यों खो गया हूं मैं, दूर – दूर तक कुछ मिलता नहीं, उम्मीद अब दिखता ही नही, इस समंदर में ना जाने कौन सी राज है, उम्मीद खो कर बैठा हूं, लेकिन अब भी आश है, . . ना जाने कब से प्यासा बैठा हूं, अब तो बारिश का ही आसरा है, चाहते हुए नहीं पी पाता मैं पानी , ना जाने कैसा ये फासला है, . . थम सा गया हूं मैं, इन सागरो के बीच में, अब ख्वाहिश नही अच्छे की, बस अंत का इंतजार है, बस यही सोच कर रुक जाता हूं मैं, थोड़े समय की बात है, दूर कितना भी हो किनारा, पर उम्मीद अब भी मेरे पास है।
1 year ago