मोती लाल साहु 30 May 2023 कविताएँ समाजिक कोई बनाता है कोई बिगाड़ता है- यह तो सदियों से चली आ रही - परंपरा है, प्रकृति अपने-आप बनती है सवंरती है- और बिगड़ जाती है फिर बनती है- जिसमें बेड़िया ना पड़ी हों मनुष्य स्वतंत्र हो- स्वतंत्रता का नाम ही जीवन है। 3905 0 Hindi :: हिंदी
कोई बनाता है कोई- बिगड़ता है यह तो सदियों, से चली आ रही है-परंपरा है,, प्रकृति अपने आप- बनती है सवंरती है और, बिगड़ जाती है फिर बनती है,, जिसमें बेड़ियां- ना पड़ी हों मनुष्य स्वतंत्र हो, स्वतंत्रता का नाम ही जीवन है...!!! -मोती