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#दर्द अपनों से

महेश्वर उनियाल उत्तराखंडी 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 79160 0 Hindi :: हिंदी

"दर्द अपनों से"

सताए चाहे दुनिया जितनी  
फिर भी हम हंस लेते हैं
आस्तीन में पलने वाले 
सांप ही अक्सर डस लेते हैं ll

धन-संपत्ति सब कुछ बांटी 
बस अपने ही लड़कों में 
आज ठोकरें खा रहे हैं 
मां-बाप खुली सड़कों में ll

क्या क्या कष्ट नहीं उठाए
खुशियां अपनों को देने में 
आज शर्म आती है उनको 
हमें अपना मां बाप कहने में ll

सब कुछ त्याग के  अपना 
उन्हें गिनाया फौलादों में 
आज रोटी के मोहताज बने हैं 
चार-चार औलादों में ll

खून का रिश्ता है जिनसे 
आज उन्हीं ने ठुकराया है 
व्यर्थ गंवाया जीवन सारा 
यही सिला जब पाया है ll

समझते रहे हम पराया जिनको 
उन्हीं ने ही आखिर थाम लिया 
अपना समझकर जिनको पाला 
उन सबने ही बदनाम किया ll

मत छोड़ो तुम दामन उनका 
जो तुम्हारे जीवन दाता है 
उनके चरणों में है स्वर्ग तुम्हारा 
पूजनीय वो पिता और माता है ll


रचनाकार:-
महेश्वर उनियाल 
"उत्तराखंडी"

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