Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक साँची धूप काव्य, वक़्त का पहिया, गणतंत्र दिवस 86771 0 Hindi :: हिंदी
तुम्हें उड़ता फूलों पे देख उर में उठते प्रशन अनेक फूलों के कानों में कुछ कह जाती हो या फिर प्यार भरा चुंबन उनको दे जाती हो फिर झूम उठते हैं पुष्प अनेक पाकर तुम्हारा स्पर्श विशेष जब एक डाल से दूजी पे जाती हो ना जाने क्या संदेश पहुंचाती हो नाना रंगों का परिधान कहाँ से पाया है? पुष्प डाल पे बैठ क्या पुष्प रंग चढ़ाया है? हर ऋतु का तुम करती हो अभिषेक चंचल सौंदर्य से मंत्र मुग्ध होता जन हर एक श्रृंगार धरा का करती हो प्रकृति में प्रेम रस तुम भरती हो अलसायी कली उलहाना तुम्हें दे जाती है स्पर्श करके क्यों निद्रा भंग कर जाती है आह्लाद से दे जाती हो नवजीवन का संकेत प्रफुलित हो उठता मन, नहीं रहती पीड़ा शेष
Hindi Lecturer in Government school GSSS Karoa Himachal Pradesh....