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बालपन और इतवार-ना होश अभी घर जाने की ना ही तमस से डरते थे

Pradeep singh " gwalya " 11 Aug 2023 कविताएँ बाल-साहित्य Pradeep singh "ग्वल्या" - बालपन और इतवार 7294 0 Hindi :: हिंदी

मिलते हम सब जब शनि शाम को
तजवीज यूं कल की करते थे,
क्या कैसे और कहां खेलना
फिर नियम भी तय कर जाते थे।

होती जब सुबह रविवार की
तन मन सजग हो जाते थे,
उस दिन खुद से आंखें खुलती थी
और अवाक गमन कर जाते थे।

दिनभर खेला करते थे
यूं बदन को मैला करते थे,
ना होश अभी घर जाने की
ना ही तमस से डरते थे।

पर जब भी अंधेरा होता था
हमें याद तब आती थी,
कि पिछले रविवार को हमने
डांट बहुत ही खाई थी।

फिर कह अलविदा यारों को
हम अपने घरों को चलते थे,
उसी राह में मन में बापू
रौद्र रुप में दिखते थे।

घर का आंगन पड़ते ही हम
दुबक दुबक कर चलते थे,
बढ़े रसोई सबसे पहले
अम्मा जी से मिलते थे।

मिली मिठाशी डांट हमें तब
करुणा सा रूप बनाते थे,
अम्मा के माफी देते ही हम
थोड़ी राहत पाते थे।

फिर दिखे आंख जब बापू की
हम थर थर कांपा करते थे,
हर बार कसम हम खाते थे
वो जो क्षणभंगुर होते थे।

इस बार बचाले है प्रभु!
यह विनती हर बार की होती थी,
पर हर बार अंधेरा होता था
हर बार पिटाई होती थी।
                     
                  -प्रदीप सिंह "ग्वल्या" 

https://www.amarujala.com/amp/kavya/mere-alfaz/pradeep-singh-baalpan-or-itwaar-2023-08-05

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