Ritvik Singh 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद #google #yahoo#bing 78463 0 Hindi :: हिंदी
इस बड़े शहर की भीड़ तूँ ,मेरे अधूरे ख़यालों की रीढ़ तू कभी सूखे में गिरी बारिश तूँ , तों कभी ख़ाली हवेली की वारिश तू कभी पहाड़ों की ठंडी हवा तू , तों कभी बिना मर्ज़ दवा तूँ कभी दिन का पहर तू , तों कभी समय की लहर तूँ कभी टूटा मकान तूँ , तों कभी मोहब्बत की छोटी सी दुकान तूँ कभी क़िस्मत की लकीर तूँ , तो कभी मँझहार पे खड़ा फ़क़ीर तूँ कभी शाम के किनारे पे बैठा लुहार तूँ , तों कभी उसकी गुहार तूँ कभी बीता हुआ ज़माना तूँ , तों कभी किसी का लिखा अफ़साना तूँ गर्म सुबह की धूप तूँ , एक अनजाने का रूप तूँ कभी क़लम की स्याही तूँ , तों कभी सफ़र में चलता राही तूँ कभी सूखे निवाले तूँ , तों कभी हाथों में पड़े छाले तूँ मिट गया मैं ए-ज़िंदगी , अब चारों तरफ़ यें छीड़ तूँ इस बड़े शहर की भीड़ तूँ ,मेरे अधूरे ख़यालों की रीढ़ तू