Raysingh Madansingh Rauthan 02 Jan 2024 कविताएँ अन्य प्रकृति के साथ सुन्दर वर्णन है, जिसका जी आंचल स्वरुप सूंदर अलंकृत किया गया है. 4686 0 Hindi :: हिंदी
बैठा ऊँचे अचल में अचल के आँचल में | रज का बिछौना था पवन का हिलोरा था | धरा को निहारता गगन को निहारता | हरे भरे कानन थे जड़ जड़ पहन थे | ऐसा धरा का स्वरुप खिली थी निराली धूप | गहरी थी घाटी घाटी नदियाँ निर्मल जल बहती | उड़ रहे थे गगन में पंछी कहीं बैठे थे छाँव में पंथी | कोयल बुलबुल गा रही थी फसलें खेतों में लहरा रही थी | मैदानों में थी हरियाली कहीं बाग सींचता माली | देख रहा था नजारा ऐसा छोड़ के जाऊं आसन कैसा | ऊँची नीची थी घटिया छोटे छोटे झरने नदियाँ | कहीं थे बीरान कानन कहीं थे सुन्दर बागान | ऐसा नजारा देख रहा था दिनकर भी ढ़ल रहा था | जैसे दिनकर कह रहा था उठ जा अब तम बढ़ रहा है | पहाड़ों के पीछे रजनी हंसती शीतल लहर खुशी मनाती | उठा चला मन हुआ चंचल छोड़ दिया अचल का आँचल | प्रकृति का उपहार है प्यारा रहने दो इसे सदाबहार न्यारा | खग मृग का जहाँ डेरा रहने दो उनका बसेरा | बैठा ऊँचे अचल में अचल के आँचल में अचल के आँचल में | :- रायसिंह मदनसिंह रौथाण
Employee in pvt company. Hobbies is writing poems and history....