Archana Singh 17 May 2023 कहानियाँ समाजिक 7766 0 Hindi :: हिंदी
नमस्ते दोस्तों 🙏🙏 आयुष पिछले 1 घंटे से अपनी मम्मी को कॉल कर रहा था , पर उसकी मम्मी उसका कॉल उठा ही नहीं रही थी । तभी उसके पापा पंकज घर में आते हैं । वो गुस्से में बोला : " देखिए ना पापा ! मम्मी मेरा कॉल उठा ही नहीं रही है । दादी कब से घर में अकेली बैठी हुई है । हम दादी को यहां लाए थे कि हम उनके साथ खूब इंजॉय करेंगे ,उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देंगे , पर मम्मी तो शाम 4:00 बजे से गई है और अब 7:00 बज गए अभी तक नहीं आई है " । पंकज : " पर तुम्हारी मम्मी कहां गई है "...? " वो आज मम्मी का किटी पार्टी था , तो अपने सारे दोस्तों के साथ किटी पार्टी करने किसी रेस्टोरेंट में गई है । गुस्से में पंकज बोला : " इन्हें तो कोई काम है नहीं , बिना मतलब के किटी पार्टी करती रहती है और अपना सारा समय इसी में बरबाद कर देती हैं " । तरला ( पंकज की मां ) अपने बेटे और पोते की बातें बैठे-बैठे सुन रही थी । फिर शांति से बोली : " आयुष बेटा ! इधर आ। उसे अपने हैं बगल में बैठा कर बोली :" तू जानता है जब तुम्हारे पापा छोटे थे तो मैं भी किटी पार्टी किया करती थी । उस समय इसे किटी पार्टी नहीं कहते थे बल्कि " चाय पार्टी " कहते थे । हम सब मोहल्ले की औरतें महीने में किसी एक रविवार को किसी एक के घर इकट्ठा होते थे और घंटो बातें किया करते थे । उस समय हमारे पास चाय के साथ-साथ " पारले जी " बिस्किट हुआ करती थी । हां कभी-कभी किसी के घर " प्याज की पकौड़ी" रहा करती थी और हम सब साथ बैठकर खूब हंसी - मजाक करते , बहुत तरह की बातें किया करते थे .... क्योंकि रोज - रोज एक ही समय सारणी के अनुसार हमारा जीना था । सुबह उठो बच्चों को स्कूल भेजो , पति को ऑफिस भेजो , घर की साफ - सफाई करो , खाना बनाओ , कपड़े धोओ ,,,, वगैरा-वगैरा ,,,, सुबह से शाम एक ही एक तरह की जिंदगी रोज जीते थे । कोई कोई औरत तो अपनी इस जिंदगी से बहुत मायूस और निराश भी हो गई थी । उदासी रहने लगी थी । तभी हम लोगों ने मिलकर ये सोचा कि महीने में एक बार ही सही पर हम अपने घर में "चाय पार्टी " रखेंगे ------ और फिर क्या तीन - चार घंटे मस्त फ्री हो कर के हम गप्पे मारा करते थे और हम उसी से खुश रहते थे । आज तुम्हारी मां भी तो वही कर रही है बेटा !फर्क सिर्फ इतना है कि अब वो " चाय पार्टी " से " किटी पार्टी " हो गई है और हमारे छोटे से घर से वो रेस्टोरेंट हो गई है ,,,, पर भावनाएं और इच्छाएं तो सभी औरतों के एक ही हैं । तो उसे भी अपनी जिंदगी जीने दे .... क्योंकि जिंदगी की इस भागदौड़ में जो समय निकल जाते हैं उन समय को फिर से लौटाया नहीं जा सकता । तरला ने इतने अच्छे से समझाया कि आयुष और पंकज दोनों बहुत खुश हो गए । कहते हैं दोस्तों ! पहले की औरतें ज्यादा पढ़ी-लिखी और समझदार नहीं होती थी , पर पहले की औरतों को अपने परिवार को बांधकर रखने की कला बखूबी आता था । तभी घबराई हुई ,,,,, थोड़ी डरी हुई ,,,, आयुष की मम्मी आई ,,,, आज बहुत देर हो गई है "...... और वो अपने पति पंकज का चेहरा देखने लगी । तरला बोली : " कोई बात नहीं बहू , होता है कभी-कभी " । पंकज भी तुरंत बोल पड़ा :" हां --- हां ! आज तो बहुत ज्यादा ट्रैफिक भी था , मैं भी तो अभी ही सब्जियां लेकर आ रहा हूं । चलो ! अब आ ही गई हो तो गरमा - गरम एक कप चाय और कुछ प्याज की पकौड़िया बना दो पुराने दिनों की याद ताजा हो जाएगी "....और सभी एक साथ हंस पड़े । धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐