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नाश्ता–पानी नाश्ता और पानी पर कैसी कहानी होगी लेकिन है बहुत ही रोमांचक कहानी

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई, धोखा, प्यार, शादी, बिजनेस, बिजनेसमैन, सूझ बूझ, होशियारी, लक्ष्य, मेहनती 6763 0 Hindi :: हिंदी

कहानी के शीर्षक से स्पष्ट नहीं हो रहा होगा कि नाश्ता और पानी पर कैसी कहानी होगी लेकिन है बहुत ही रोमांचक कहानी. कहानी से पहले नाश्ता- पानी के विषय में मैं कुछ शब्द कहना चाहता हूं. आशा करता हूँ जानना जरूर चाहेंगे. नाश्ता करने से भूख तो शांत नहीं होती लेकिन खाना मिलने तक टिके रहने की क्षमता जरूर मिलती है ये सभी को पता है. स्कूल और कॉलेज अगर बहुत सुबह जाना होता है और घर पर नाश्ता ना बना हो तो बाहर किसी ढाबे या ठेले से नाश्ता कर के जाते हैं. मेहनत - मजदूरी कर के छूटे लोग घर जाने से पहले अक्सर कुछ नाश्ता जरूर करते हैं. दुनिया का मानना है कि दिन में नाश्ता करने का 2 समय होता है एक तो सुबह और दूसरा 4 बजे के करीब. लेकिन रोजी - रोटी की भागदौड़ में मशगूल लोगों का नाश्ता करने का कोई निश्चित समय नहीं होता. जब फुर्सत मिली कर लिया. अब ज्यादा ना पकाते हुए कहानी पर आता हूँ. 
गर्मियों के दिन थे. बुद्धन मजदूरी कर के घर की ओर लौट रहा था. रास्ते में रोज की तरह अपनी पसंदीदा चाय की टपरी पर नाश्ता करने जा बैठा. शादी तो हुई नहीं थी. माँ - बाप भी गाँव में रहते थे. वो अकेला शहर में रोजी-रोटी कमाने आया हुआ था. खुद खाना बनाता, खुद बर्तन माँज देता और खुद कपड़े भी धो लेता था. आज उसका खाना बनाने का मन नहीं था. थोड़ा ज्यादा थक गया था तो चाय के साथ आलू के पराठे का ऑर्डर दे दिया. गर्मा - गर्म चाय और पराठे आ गए. खाया पिया और पैसे देकर घर को चल दिया. रास्ते में चलते हुए वो कुछ-ना - कुछ सोचता हुआ चलता था. आज उसके खयालों में साहबगिरी थी. जिस फोरमैन की देखरेख में काम करता है उसके ठाठ-बाट देखकर उसका मन हो रहा है कि काश वो भी वैसा ही साहब होता तो उसके कितने ठाठ होते. बस काम करवाना रहता. कोई मेहनत ना करनी पड़ती. जिसे चाहता छोटी से गलती पर भी डांट लगा देता. इन्हीं ख़यालों में खोया हुआ घर पहुंचा और चैन की नींद सो गया. दिन भर मेहनत करे तो चैन की नींद कैसे ना आयेगी भला. रोज की चाय तो निश्चित थी भले ही समय निश्चित ना हो. ऐसा ही चलता रहा. फिर एक रात ड्यूटी से लौटते हुए चाय की टपरी की ओर जा रहा था और सोच रहा था कि पराठे खा लेता हूँ आज खाना नहीं बनाऊँगा. पराठे के साथ दही लेना है या अचार. अचार लूँ तो कौन सा यही सोचते हुए सड़क पार करने लगा और सामने से आ रही ट्रक का उसे ध्यान नहीं रहा और अचानक से उसे पीछे से एक जोर का धक्का लगा और वो सड़क पार जा गिरा. पीछे पलट कर देखा तो जिसने उसे धक्का दिया था उस इंसान का ट्रक से एक्सीडेंट हो गया. ट्रक चालक ने ट्रक तो रोक दिया जिससे उसे गंभीर चोट नहीं आयी लेकिन अस्पताल ले जाने लायक हालत हो ही गई थी. बुद्धन ने उसे तुरंत उठाया और उसी ट्रक में बैठा कर अस्पताल की ओर चल दिया. गलती ट्रक चालक की नहीं थी बुद्धन की थी इसलिए बुद्धन का फर्ज बनता था कि उसे अस्पताल ले जाये. अस्पताल पहुंच कर उस इंसान को बुद्धन ने भर्ती कराया और इलाज शुरू हुआ. इलाज होने के बाद भी उसे होश नहीं आया. बुद्धन उसके लिए वही बैठा रहा क्यूंकि वो इंसान कौन है उसके घर वाले कौन हैं कुछ पता नहीं था. उसके होश आने तक और उसकी शिनाख्त होने तक डॉक्टर ने बुद्धन को ही उसकी देखभाल करने को कहा. काफी रात हो गई और भूख से बुद्धन की हालत खराब होने लगी तो डॉक्टर से बता कर वो अस्पताल से बाहर कुछ नाश्ता करने निकला. अक्सर अस्पताल के पास कोई चाय नाश्ते की दुकान जरूर होती है. सामने ही उसे दुकान दिखी. आगे बढ़ ही रहा था कि अचानक एक चोर आ धमका और उसे धक्का मारकर गिरा दिया और उसके जेब से पैसे निकाल कर भाग गया. दुकान वाला ये सब देख रहा था. उसने बुद्धन से कहा कोई बात नहीं ये तो यहाँ रोज होता रहता है. तुम आ जाओ मैं तुमसे नाश्ते के पैसे नहीं लूँगा. बुद्धन को समझ नहीं आया कि दुकान वाला केवल उसी पर मेहरबान है या सभी को ऐसे ही मुफ्त मे खिलाता रहता है. नाश्ता करते समय जब बुद्धन से ना रहा गया तो उसने इस व्यवहार की वजह पूछी तो पता चला कि उसने बुद्धन को उस ज़ख्मी इंसान को अस्पताल में भर्ती करते हुए देखा था और सारी बात जानता था. उसकी अस्पताल में जान - पहचान थी तो उसे सारी जानकारी मिल गई थी. नाश्ता करके बुद्धन वापस अस्पताल में मरीज के पास चला गया. उसे चिंता में रात भर नींद नहीं आयी. सुबह उसे काम पर जाना था लेकिन मरीज़ को छोड़कर कैसे जाता. जेब में पैसे भी नहीं थे. बिना काम किए पैसे कैसे आयेंगे यही सब सोच रहा था कि मरीज़ को होश आया और बुद्धन ने जल्दी से डॉक्टर को बुलाया. होश में आने के बाद मरीज़ को बेहतर महसूस हो रहा था लेकिन उसे कुछ याद नहीं आ रहा था. अब बुद्धन के लिए एक और समस्या खड़ी हो गई. बिना याद आये उसके घर वालों को कैसे खबर करता. छोड़ कर जा भी नहीं सकता था. करे तो क्या करे. इसी दुविधा में था कि डॉक्टर ने फीस भरने को कह दिया. अब बुद्धन की हवाइयाँ उड़ने लगी. पैसे कहाँ से देगा. तभी मरीज़ ने पूछा आप कौन हैं? मुझे क्या हुआ है? मैं कहाँ हूँ. किसी को उसके बारे में पता नहीं था. केवल बुद्धन कुछ बता सकता था क्यूंकि वही उसे अस्पताल लाया था. डॉक्टर ने कहा कि थोड़ी देर में काउन्टर पर फीस भर देना और उसे मरीज़ के पास छोड़ कर चला गया. फिर बुद्धन ने उसे सारी कहानी बतायी की वो यहां कैसे पहुँचा. और पैसों को लेकर रात को जो हादसा हुआ वो भी बताया. मरीज़ बोला कि आप मुझे यहां लाए लेकिन मेरा एक्सीडेंट आपकी वजह से तो नहीं हुआ ना. इलाज का खर्चा मैं भरुंगा. अब बुद्धन को कुछ राहत मिली लेकिन मरीज़ को अभी भी कुछ याद नहीं आ रहा था इसलिए फीस भरने के बाद वो आराम करने के लिए सो गया. और बुद्धन अपने काम के लिए निकल गया. शाम को बुद्धन काम करके सीधा अस्पताल पहुँचा तो मरीज़ जाग चुका था और उसे अपने बारे में कुछ - कुछ याद आने लगा था. उसने अपना नाम महेश बताया. और उसका अपने परिवार के बारे में बताया लेकिन घर का पता उसे अभी भी याद नहीं था. बुद्धन ने कहा - कोई बात नहीं जब याद आ जाएगा तो आपके परिवार को खबर कर दी जाएगी. फिर बुद्धन दोनों के लिए अस्पताल के बाहर से खाना लाया. दोनों ने खाया और आराम करने लगे. 
अगले दिन सुबह महेश ने बुद्धन को जगाया और बोला मुझे अपने घर का फोन नंबर याद आ गया है. उन्हें फोन कर के बता दो तो वो आ जाएंगे. बुद्धन ने ऐसा ही किया. कुछ देर बाद एक गाड़ी अस्पताल के बाहर रुकी. उसमे महेश की पत्नी और दोनों बच्चे आए. महेश की हालत को देखकर उसकी पत्नी ने रोना शुरू कर दिया. बुद्धन वहीँ खड़ा देख रहा था. महेश ने पत्नी को समझाया कि उसे कुछ नहीं हुआ है. वो ठीक है. और बुद्धन की वजह से ही उसकी जान बची है. महेश की पत्नी और बच्चों ने बुद्धन की ओर ऐसे देखा जैसे उसने उनके ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया हो. महेश की पत्नी बुद्धन का धन्यवाद करने लगी तो बुद्धन बोला कि मुझे बचाने के लिए ही इनकी जान खतरे में पड़ी. इनकी जान बचाना तो मेरा फर्ज़ बनता है. अब मैं चलता हूँ बोलकर बुद्धन जाने को तैयार हुआ तो महेश ने उसे रोका और एक कार्ड देकर कहा कि जब तुम्हारे पास समय हो मुझे इस पते पर आकर मिलना. बुद्धन कार्ड लेकर चला गया.
कई दिन बीत गए. बुद्धन को महेश से मिलने की फुर्सत ना मिली. एक दिन महेश की तबियत कुछ खराब सी लग रही थी तो वो काम पर नहीं गया. उसे याद आया कि महेश ने उसे कार्ड देकर बुलाया था. सोचा कि आज समय है जाकर मिल लेता हूँ. बुद्धन पते पर पहुंचा तो क्या देखता है कि पता एक बड़ी सी कंपनी का है. गेट पर गार्ड ने रोका और पूछा किससे मिलना है तो बुद्धन ने उसे कार्ड दिखा दिया. गार्ड ने बोला - ये तो इस कंपनी के मालिक का कार्ड है. गार्ड ने कंपनी के अंदर फोन लगाया कुछ बात की फिर खुद ही बुद्धन को महेश से मिलाने ले गया. महेश बुद्धन को देखकर बहुत खुश हुआ. दोनों बैठ कर बातें करने लगे. महेश ने बुद्धन के लिए चाय-नाश्ता मंगवाया. बातों - बातों मे बुद्धन ने पूछा - आप इतनी बड़ी कंपनी के मालिक हैं तो उस रात को अकेले उस सड़क पर क्या कर रहे थे. महेश ने बताया कि उसके बिजनेस में बहुत घोटाला हो रहा था जिसकी वजह से उसे बहुत घाटा हुआ था. कोई अंदर का आदमी ही कंपनी को और महेश को धोखा दे रहा था जिसका पता नहीं चल रहा था. इसी तनाव में महेश कंपनी से निकला और ड्राइवर को गाड़ी के साथ घर भेज दिया और खुद पैदल टहलने निकल गया ताकि कुछ तनाव कम हो और उसी जगह जा पहुंचा जहां उसका एक्सीडेंट हुआ था. सड़क पार करते समय उसने देखा कि बुद्धन का ध्यान आती हुई ट्रक पर नहीं है तो उसने अपनी जान दाव पर लगाकर उसकी जान बचाई. बुद्धन ने पूछा कि उसे मिलने के लिए बुलाने की और कोई खास वजह तो नहीं थी ना. तो महेश बोला - हाँ वजह तो थी. ये बताओ तुम काम क्या करते हो. बुद्धन ने बताया कि वो मजदूरी करता है. फिर महेश ने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो बुद्धन ने बताया कि वो ग्रेजुएट है. महेश दंग रह गया कि एक ग्रैजुएट आदमी मजदूरी कर रहा है. महेश ने बुद्धन से कहा कि कल से सुबह 9 बजे कंपनी में आ जाना. काम क्या करना है ना बुद्धन ने पूछा और ना महेश ने बताया. अगले दिन बुद्धन कंपनी पहुँचा और महेश से मिले बिना जहां उत्पादन होता था सबसे पहले वहाँ गया और कामगारों का काम देखा और उन्हें कुछ और तारिके बताये. फिर हिसाब किताब देखने चला गया. सब तो ठीक लग रहा था लेकिन कमी कुछ तो थी. बुद्धन रोज काम देखता और हिसाब चेक करता. महेश उसके काम पर रोज ध्यान देता था. बुद्धन ने एक दिन हिसाब के समय देखा कि उत्पादन और हिसाब में काफी अन्तर है. उसने सब से पूछा कि किसने गलत जानकारी लिखा है तो किसी ने मुँह नहीं खोला. किसी को खबर नहीं थी कि किसने ऐसा किया है. बुद्धन ने सोचा सीधी उंगली से घी नहीं निकलने वाला है. उसने कुछ योजना बनाई और उसपर लग गया. योजना के अनुसार 2 दिन के अंदर घोटालेबाज को पकड़ लिया और उसे कंपनी से निकाल दिया. इस बात पर महेश बहुत खुश हुआ और बुद्धन का सम्मान करते हुए उसने पूरी कंपनी के सामने ये घोषणा किया कि बुद्धन अब इस कंपनी का मैनेजमेंट संभालेगा और आज से इसका नाम होगा "बुद्धिराम". बुद्धिराम अब कंपनी के उत्पादन से लेकर आयात - निर्यात सभी काम देखता था. उसे अपने पुराने दिन याद आये की वो कैसे मजदूरी करता था और चाय पराठे से काम चलाता था. वो ख्वाब देखा करता था कि वो किसी कंपनी का साहब होता और कामगारों से काम करवाता. उसका ये सपना पूरा हो गया था. पुराने दिनों को याद करते हुए महेश और बुद्धिराम उसी चाय की टपरी पर चाय पीने गए. दोनों बिजनेस की बातें करते हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थे. महेश बोला - वाकई यहाँ की चाय बहुत अच्छी है. अचानक पीछे से बुद्धिराम पर चाकू से हमला हुआ. दर्द से बुद्धिराम कराह उठा. हमला करने वाला व्यक्ति महेश की कंपनी का वही घपलेबाज था जिसे बुद्धिराम ने निकाला था. बदला लेने के लिए उसने बुद्धिराम पर हमला किया था. अब वो महेश की ओर लपका तभी महेश ने एक जोर का घूसा लगाया और वो पीछे जा गिरा. वो उठ ही रहा था तब तक दर्द कम होने पर बुद्धिराम भी उठ चुका था और घपलेबाज को पीछे से पकड़कर ऊपर उठाया और ज़मीन पर पटक दिया और दोनों ने उसे धर दबोचा. ये उठा पटक देख कर टपरी वाले ने पुलिस को फोन कर दिया था. पुलिस आयी और उसे पकड़ कर ले गई और बुद्धिराम को अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल से ठीक होकर बुद्धिराम फिर से अपने काम पर लग गया. एक दिन उसके माता-पिता उससे मिलने आए. वो उसकी तरक्की देख कर बहुत खुश थे. अब उनकी इच्छा थी कि बुद्धिराम की शादी हो जाये. ना जाने उनकी ये इच्छा कब पूरी होने वाली थी. बिजनैस अच्छा चल रहा था और मुनाफ़ा भी काफी हो रहा था तो आमदनी का हिसाब रखने के लिए किसी की जरूरत थी. अखबार में इश्तिहार दिया गया वाणिज्य से ग्रैजुएट व्यक्ति की जरूरत है. इंटरव्यू के लिए लाइन लग गई. महेश और बुद्धिराम इंटरव्यू ले रहे थे और एक के बाद एक सब को बाहर करते जा रहे थे तभी एक लड़की आयी. उसने सारे प्रश्नों के उत्तर बिल्कुल सही दिए और अंतिम प्रश्न को भी पार कर गई जिसमें ये पूछा था कि बिजनेस किस बुनियाद पर चलता है? सारे चरणों को पार करके उसने इस पद को पा लिया. उसका नाम था मधुरिमा. मधुरिमा बहुत ही होशियार थी और उसके आने के बाद बुद्धिराम के सिर का बोझ बिल्कुल हल्का हो गया. दोनों में काम की बातों का साझा बहुत ही आसानी से हो जाता था. दोनों पढ़े - लिखे थे ही साथ ही साथ एक दूसरे को समझते भी थे. फिर क्या था धीरे - धीरे दोनों में प्यार की शुरुआत हुई और अपने घरवालों को बताकर रिश्ते की बात चलायी और दोनों की शादी भी हो गई. महेश ने दोनों को अपने बिजनेस में भागीदार बना लिया. इस तरह से बुद्धिराम ने अपने सपनों के साथ- साथ अपने माता - पिता के सपनों को भी पूरा किया. उसके नाश्ता करने की आदत ने सब की जिंदगी बदल कर रख दी. हमारी जिंदगी मेें भी ऐसे मौके आते हैं लेकिन हम उन्हें पहचाने बिना खो देते हैं. माना की किस्मत ने बुद्धिराम को महेश से मिलाया लेकिन उसकी मेहनत और ईमानदारी ने उसे एक मजदूर से एक बिजनेसमैन बना दिया.

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