संदीप कुमार सिंह 11 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4720 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) पहले जैसे अब कहां,चैन रैन आराम। चिन्ता सोते जागते,फिर भी हो बदनाम। मगर बुरा तो मत लगे,रहिए तो भी खुश_ यही कला तो खास है,करते रहिए काम। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....