ग़ज़ल-3
छोड़ो एक घर में कई दीवार की बातें
चलो हो जायें दो चार- प्यार की बातें
प्यार को कभी ढ़ाल बनाके देखियेगा
शत्रु भी भूल जायेंगे तलवार की बातें
फूलों ने इतना रिझाया कि सभी भूल गये
सुनना ड़ालों की चुभन भरी ख़ार की बातें
भूख से मुरझाया आख़िर समझे भी तो कैसे
किसी सहानुभूति- सुन्दरी से श्रॄंगार की बातें
होती है तक़लीफ़ जब करते हैं अपने ही
धोख़ा से पहले लोग ऐत़बार की बातें
हश्र दो ही है तो है व्यर्थ सोचना ‘ शशि ‘
जीवन- समर में हमें जीत हार की बातें