BALDEV RAJ 30 Mar 2023 आलेख समाजिक "माँ के बराबर कोई नहीं 21279 0 Hindi :: हिंदी
"माँ के बराबर कोई नहीं " माँ शब्द सुनते ही, जो भाव मन में आते है,उनको को कह पाना, समझा पाना, वयक्त कर पाना कठिन ही नहीं, असंभव सा लगता है | माँ शब्द एक ऐसी जिम्मेदारी का एहसास है, जिसे केवल माँ ही जानती है | माँ की भूमिका माँ के सिवा कोई नहीं निभा सकता, इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए वह अपनी हानि-लाभ को नहीं देखती | माँ केवल देना जानती है, बदले में केवल मात्र प्यार चाहती है | माँ की ममता का अहसास , तब होता है, जब माँ हमारे साथ नहीं होती | माँ एक अबोध बालक का सुरक्षा चक्र होती है, माँ की गोद में आते ही बालक रोना तक भूल जाता है, अपने आप को माँ के हाथों में सुरक्षित समझता है | बालक जन्म से केवल माँ को जानता है, केवल माँ को पहचानता है, अन्य रिश्तों की पहचान तो उसे केवल माँ ही करवाती है | संसार में हमें जन्म के साथ ही मिलती है माँ, बिना माँ के संसार में जन्म असम्भव है, परमात्मा ने भी संसार में आने के लिए माँ को ही चुना, सर्व समर्थ परमात्मा को भी माँ की गौद से बड़ा सुरक्षित स्थान नहीं मिला, माँ की आज्ञा में रहे, कभी अपनी प्रभुता माँ के समक्ष प्रकट नहीं की | माँ को अपने बालक से प्रिय कोई नहीं, उसकी हर गल्ती उसे प्रिय लगती है | अपने बच्चें के लिए जो भी करती है, मन से करती है | संसार में बच्चे की प्रथम गुरु माँ को माना गया है , गुरु का स्थान परमात्मा से भी बड़ा माना गया है | माँ स्वयं कष्ट में होते हुए भी, बच्चों की कुशल क्षेम पुछती है, अपना दुख प्रकट नहीं करती |स्वयं भूखी है, बच्चे के लिए खाना लिए बैठी है | जब बच्चा अबोध होता है , वह अपनी कोई इच्छा जाहिर नहीं कर सकता उस वक्त माँ ही है जो अपने बच्चे की हर जरूरत को जान लेती है, उस की भूख -प्यास को पहचान लेती है, माँ के बराबर कोई नहीं, अपने बच्चे के लिए जानी जान है माँ, बच्चे की हर जरूरत को पुरा करती है माँ |