Raj Ashok 28 May 2023 कविताएँ समाजिक जिम्मेदारी 7383 0 Hindi :: हिंदी
जिम्मेदारियाँ बहुत है । अबोध मन क्या करे ,जमाने मे। चुनौतियों के तरक्ष , अक्सर दिल मे चुभते है। उलझनों मे उलझे,इस बचेन मन को अब लोगों का ,मशवरा भी। मशकरो का कोई ,जोक लगता है । चाहत है ये दिल की के खुद पे खुब हंसे ... पर मेरे शब्दों की बंदिश ने मेरी खिलखिलाहट सी हंसी को , गुलाम बना रखा है। चहरे के हाव -भाव से ही अक्सर आज-कल की दोस्ती निभाई जाती है। योहि कभी खालीपन मे, जरा सा, सोचते है , के काश आज की सभ्यता , ये हमें जरा से संसकार बता दे, हार, जीत का फर्क सिखा दे । तो जीवन क्या आसान होगा ।