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नमन नारित्व कर रहा कलम

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 गीत देश-प्रेम This is the Patriotic Song who has been binded in Sonet 26187 0 Hindi :: हिंदी

नर उत्तम नरोत्तम होता, 
ज़ऩनी के महा सम्र्पण से! 
ईक महा पुरूष का कर्म प्रबल, 
माता के कर्म अभी अर्पण से!! 
              जो बांध के हाथों मे धागे को, 
              अपना अधिकार करती है प्रबल! 
              उस बहन के रक्क्षा का कर्म बली, 
              ईश्वर का प्रेम ईस वशुधा पर!! 
नर का आस्तित्व ईस वशुधा पर, 
ज़ऩनी ने बन ईश्वर धारा है! 
नारी का बल है महा प्रबल, 
जिनको नमन हमारा है!! 
                कभी मा बनकर कभी बन के बहन, 
                कभी अचल कर्म ईस भू तल पे! 
                कभी धरा भार को तार लिए, 
                बन संगीनी हर पथ - पथ पे!! 
ले कर है चली फिर ज्ञान मेरा, 
चल तुझे राह दिखलातें हैं! 
ये ज्ञान सत्य मे जय होता, 
तुझे ज्ञान शुधा को चखातें हैं!! 
                     जो बने संगीनी कभी पुरूष कि, 
                     कर त्याग सम्र्पण हर ईच्छा! 
                     कभी बहन रही कभी रही पुत्री, 
                      कभी ईस धरती का नाज़ रहा!! 
नारीत्व धरा के हर सै मे, 
मै को मै से है निकाल दिया! 
मैने ने ना मै को रखा कभी, 
इस लिए धरा को ज्ञान दिया!! 
                     हर सफल शक्श के कर्म के पिछे, 
                     होती है हांथ ईक नारी की! 
                     नारी से ज़गत पर महा पुरूष, 
                     संत बने ईक नारी भी!! 
वो पुरूष बना है महा ज्ञान, बली, 
जिसने नारी का सम्मान किया! 
इसलिए बनी ये देश सत्री, 
जीसे संतों ने मा का सम्मान दिया!! 
                    ईक शेर कहलाने वाले वीरों कि, 
                    विरांगना शेरनी कहलाती है! 
                    जो कष्टो के ऋण को पिलाकर के, 
                     जीवन ज़ऩनी कहलाती है!! 
धन्य - धन्य है धन्य आपके, 
कर्म पे वशुधा नाज़ रखे! 
ज़ो दबा शुधा निज़ नयनों मे, 
भारत का गोद आबाद रखे!! 
                      भारत कि न राखी पड़े सुनी, 
                      ये महा दान कर त्याग - तेज़! 
                     है धरा गगन को नाज़ अमित, 
                     नारी वशुधा का अहम भेंस!! 
है गर्व अधिक माता के कर्म पे, 
जो निज़ पुत्र प्रेम से मा कहलाती है! 
जो धरा संरक्क्षण को पुत्र शरहद भेजे, 
वो भारत मा कहलाती है!! 
                 हर सै मे सै के अधरों मे, 
                 सत्री कर्म ने त्याग दिया!! 
                 महा पुरूष का ज्ञान है मा का आंचल, 
                 जीसने अज्ञान संहार लिया!! 
करता हूं नमन पहले माता को, 
फिर जगती का प्यार अचल! 
है कदम - कदम पर नमन कलम का, 
नारित्व को करता नमन कलम!! 
                      ये कलयुग भी है तर सकता, 
                      सत्यूग फिर झल्क दिखाएगी! 
                      गर पूत्र बने संकर वशुधा कि, 
                      मा अनुशूईया  कहलाएगी!! 
पुरूष नाज़ है ईस वशुधा कि, 
तो सत्री नाज़ है माता कि! 
प्रशाद कर रहे सत्यूग कि अभिलाषा, 
राम राज यही भारत माता की!! 
                         देती है झल्क संघर्ष धरा को, 
                         आज मे कल के दर्पण से! 
                         ईक महा पुरूष का कर्म प्रबल, 
                         ज़ऩनी के कर्म अभी अर्पण से!! 
नर को उत्तमता को अभीनंदन, 
करती है धरा हर कण - कण से! 
क्योंकि नर उत्तम नरोत्तम होता, 
ज़ऩनी के महा सम्र्पण से!! 

संगीतकार       :- अमित कुमार प्रशाद
সন্গিতকার    :- অমিত কুমার প্রশাদ
Soneter        :- Amit Kumar Prasad

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