Meenakshi Tyagi 06 Jul 2023 कविताएँ समाजिक सभी प्रकृति प्रेमियों को समर्पित। 5690 0 Hindi :: हिंदी
कभी-कभी मेरे हृदय में विचार आता है, कि क्यों पक्षियों का मधुर गीत मुझे भाता है, क्यों हवा के झोंके मेरा मन बहलाते हैं, और क्यों अगमों(वृक्ष) का लहराना मुझे अपनाता है, निर्मल सलिल भी जैसे मुझे आवाज लगाता है, इतनी उद्विग्नता में भी स्थिर रहना सिखा जाता है, रवि भी रोज आकर मुझे जगाता है, नवीन ज्ञान का दीपक मुझ में जलाता है, बुझी हो जगमगाहट जब बनावटी बत्तियों की तो यह चंद्रमा अभी मुझे कुछ बताता है, भर देता है मेरे हृदय को रोशनी से जो यह गगन तारों से भरा जगमगाता है, देखो उठी है यह अवलेखा (कलम)आज फिर से, के लिख दूं तेरी रमणीयता मैं आज फिर से तेरे हर एक कण में खो गई हूं आज फिर से प्रकृति से ही प्रकृति हो गई हूं आज फिर से प्रकृति से ही प्रकृति हो गई हूं आज फिर से