Ujjwal Kumar 10 Jun 2023 कविताएँ समाजिक 8561 1 5 Hindi :: हिंदी
प्रकृति को इतना सताया है सोचो हमने क्या पाया है... पशु पक्षी को करके बेघर बेजुबानो का दिल दुखाया है सोचो हमने क्या पाया है... जिसने ऑक्सीजन घर-घर पहुंचाया है उन पेड़ों को काट सोचो हमने क्या पाया है... जिस गंगा के पवित्रता की कसमें हमने खाया है उसमे बहा के नाली सोचो हमने क्या पाया है... जिस प्रकृति ने मां की तरह हमपे प्यार लुटाया है अपने निर्मल जल से हमारी प्यास बुझाया है उस माँ को हमने सताया है सोचो हमने क्या पाया है... ✍स्वरचित कविता उज्जवल कुमार
10 months ago