Meenakshi Tyagi 12 Jul 2023 कविताएँ समाजिक Shivani 9206 1 5 Hindi :: हिंदी
हवाएं भी बेरुखी सी थी और मौसम भी नाराज था लग रहा था कि जैसे ये मेरी तबाही का साज था पर एक बादल घुमड़ कर ऐसा बरसा मुझ पर कि मैने जाना ये तो मेरा खुद से रूबरू होने का आगाज था।।
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