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आज भी

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 शायरी अन्य आज भी 6685 0 Hindi :: हिंदी

अंगारों पे चलने की आदत 
गई नहीं तुम्हारी 
तभी तो आज भी ख्वाइशों के
अमवार सजाये बैठे हो 
कलेज़े में आग लिए 
अब भी फिरती हो 
तभी तो आज भी जलाने की 
आदत गई नहीं 
पहले क्या कम था 
जुल्मो सितम मुझ पे
जो फिर से आ गये हो 
मुझे करने दमन 
ख्वाइशें ख्वाइश बनके ही 
ख्वाइश रह गए 
इश्क के बैगर बदन 
बेजान रह गए   
 

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