मोती लाल साहु 01 Jun 2023 कविताएँ समाजिक सैलानियों के इस शहर में- भृंगी ढूंढता फिरता हूं ऐ फ़ितरत तू अपनी रजा तो बता- यूंकि फ़ितरत बदलता है- सफर-ए-मंजिल में यह फ़ितरत है- भृंगी फ़ितरत लेता है अपनी गुण पिरोता है। 4230 0 Hindi :: हिंदी
सैलानियों- के इस शहर में, भृंगी ढूंढता फिरता हूं ऐ फ़ितरत तू- अपनी रजा तो बता यूंकि- फ़ितरत बदलता है सफार-ए- मंज़िल में यह फ़ितरत है भृंगी फ़ितरत- लेता है अपनी गुण पिरोता है सैलानियों के इस- शहर में भृंगी ढूंढता हूं.....!!!! -मोती