शिवराज आनंद 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मानवता के प्रति कर्तव्य 85638 0 Hindi :: हिंदी
जिनके दिल टूटे हैं चलते कदम थमे हैं, वो जीना जानते हैं । ना जख्मों को सीना जानते हैं ।। तुम उन्हें भी अपना लो ।प्यारे तुम मेरी बात मान विश्व बंधुत्व का भाव लेकर, जन- जन से बैर भाव छोड दो । "यहा उनका भी दिल जोड़ दो"।। हम सब के ओ प्यारे, किस कदर हैं दूर किनारे। जीत की भी क्या आस रखते हैं मन मारे ? ये मन मैले नहीं निर्मल हैं, सबल न सही निर्बल हैं, समझते हैं हम जिन्हें नीचे हैं, वे कदम दो कदम ही पीछे हैं, जो हिला दे उन्हें ऐसी आंधी का रुख मोड़ दो । यहाँ उनका भी दिल जोड़ दो ।। दिल बिना क्या यह महफ़िल है, क्या जीने के सपने हैं, बेगाना कोई नहीं सब अपने हैं. ये सब मन के अनुभव हैं, नहीं हूँ अभी वो, पहले मैं था जो, सुना था मैंने मरना ही दुखद है, पर देखा लालसाओं के साथ जीना, महा दुखद है. फिर क्या है सुख ? क्या जीवन सार ? सुख है सब के हितार्थ में, जीवन - सार है अपनत्व में, ऐसा अपनत्व जो एक दूजे का दिल जोड़ दे । कोई गुमनाम न हो नाम जोड़ दे ।। वरना सब असार है चोला, सब राम रोला भई सब राम रोला ।।