ग़ज़ल-9
अपनी सूरत का भी क्या तुझको कुछ ख़बर है
ऐ गरीबी ! पैसे वालों की तुझ पर बुरी नज़र है
सी-सी कर जोड़ते रहे कि ढ़क ले शायद मुझे
ये पाँव चादर के बाहर आज़ भी कुछ मगर है
इक मुफ़लिस से पूछा कि ये पेट-पीठ एक कैसे
भूख शान से बोल पड़ी देख ये मेरा ही कह़र है
उन लोगों को साहिल कभी मिल सकती नहीं
है ज़िनकी नाँव में छेंद और दिल में भँवर है
तुझे भी गुन-गुनाना होगा कोई ग़ज़ल ‘शशि ‘
आज़ रात महफ़िल में जो ग़मों का स्वयंवर है
लेखक-डाo सच्चितानन्द 'शशि '