ग़ज़ल-13
दहशत में यहाँ लोग क्यों हर ओर हो गए
सुना है शहर के कोतवाल अब चोर हो गए
भूख मिटाने का अब निभाकर रहेंगे वायदा
ख़ादी में छिपे इसलिए आदमख़ोर हो गए
ड़रकर बैठते हैं शहर के पेड़ों पर परिन्दे
तेजाब से हर शाख़ इतने कमज़ोर हो गए
मानव दिल दिमाग़ मन त्रिकोण अंश योग अब
तीन सौ साठ़ विकृत आकार चौकोर हो गए
मुद्दत के बाद मिले भी हम तो’शशि’ इस तरह
आँखें नम हो गईं सनम भावविभोर हो गए