Santosh kumar koli 11 Dec 2023 कविताएँ समाजिक कन से मन 10826 0 Hindi :: हिंदी
एक कन चला बनने मन, उर में ले उमंग। नीरव, निश्चल, निष्क्रिय, कभी समीर, कभी नीर संग। कभी बहता, कभी लुढ़कता, कभी चलता, कभी उड़ता है। न कुछ कहता, न कुछ सुनता, अपनी ही धुन में रहता है। क्षण -क्षण कण, क्षुण्ण, क्षुब्ध, क्षरण हत, विलुप्त, मन बना न रहा कण। कण कणिक, निरूपित, उभयावल अंधी दौड़। संक्षुब्ध, संक्षारण, आगे दौड़, पीछे चौड़। कण का क्षत्र, क्षम, कण का वजूद। कण-कण से बने मन, कण स्वयं संभूत।