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जब भी 15 अगस्त है आता- साथ में बचपन की याद भी लाता

Pradeep singh " gwalya " 14 Aug 2023 कविताएँ देश-प्रेम Pradeep singh "ग्वल्या" 15 अगस्त : वो यादें 7592 0 Hindi :: हिंदी

जब भी 15 अगस्त है आता
साथ में बचपन की याद भी लाता
उसकी भीनी भीनी खुशबू
आहा! क्या कहना
किस तरह मन को बहलाता।

पहले मास्टर जी के निर्देश थे आते
प्रोग्राम है ये बताते
कितना डिसिपलिन,और उसमें
उन्हें हमसे क्या उम्मीद ये जताते।

साफ धुले कपड़े होते प्रेस के साथ
2–4 फूल हाथों में फिर क्या बात
अरे नारे याद करने हैं उसका क्या भई
ठहर जरा! सुबह तक बहुत समय है
घबराने का नहीं।

सुबह पहले कुछ पल नारों संग गुजारते थे
फिर कपड़े पहनते और बाल संवारते थे
अधमेले पड़े जूतों पर पोलिश नचाया करते
बदन पे खुशबू महके तो जेब में 
गुलाब सजाया करते।

चलो भई जल्दी जाना है
झंडे में फूल भरके सजाना है
चटाई बिछानी,अतिथियों की 
कुर्सियां लगानी हैं फिर आगे 
याद की हुई कविता भी तो गानी है।

जनता में जोश जगाये वैसी
हम कविता गाते थे
सबका मन बहलाते थे
गुरुजन जो पैन लाए इनाम को
उसका सेट मैं ही पाऊं
ऐसे ख्वाब सजाते थे।

जब प्रोग्राम आगे बढ़ता
गाने की बारी आती
चढ़ते मंच पर तो आगे
भीड़ नर्वस कर जाती थी
पर फिर याद करते वीरों को मन से
तो कविता निकलती सीधे जहन से।

तब दोनों हाथ जोड़ झुककर
करते झंडे को प्रणाम फिर
एक हाथ मिलता लड्डू और
दूजे हाथ मिलता इनाम।

वाह! क्या दिन हुआ करते थे
चार तराने गाने को हम 
तत्पर तैयार हुआ करते थे।

पर अभी कुछ ज्यादा बूढ़ा हुआ नहीं मैं
चलो अपने गांव के स्कूल चलते हैं
इस बार अपने बचपन को 
पूरे जुनून से जीते हैं।।

                         प्रदीप सिंह "ग्वल्या" 
  



यह कविता बचपन की यादों के ऊपर लिखी गई है कि कैसे हम लोग स्वतंत्रता दिवस को किस जोश और जुनून के साथ मनाते थे।अब वो स्वतंत्रता दिवस नहीं रहा हम लोगों के अंदर जो जुनून होता था वो आज देखने को नहीं मिलता । हम लोग हाथ में झंडा लेकर गलियों में नारे लगाते हुए घूमते थे ।

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