अनिल कुमार केसरी 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक दहेज का लालच आदमी को इंसान से जानवर बना देता है। 8965 0 Hindi :: हिंदी
दहेज की आग एक रसोई से धुआँ उठा, आग लगी, लपटे बाहर निकली, शोर में कुछ चीखें चिल्लाती, भीड़ में लोगों की कानों आयी, बचाओ-बचाओ, कोई बचाओ, आग धधकती, लपटे उठती, कोई जिन्दा जल रहा, बचाओ, कोई औरत थी, जलने वाली, कल-परसों ब्याहने वाली, ससुराल में अभी-अभी थी आयी, पीअर से ले खुशी-खुशी विदाई, लक्ष्मी बनने किसी आँगन की, किसी आँगन से लक्ष्मी थी आयी, रोटी सेक रही थी, शायद या किसी ने थी आग लगाई, चिता थी, वह किसी के अरमानों की, किसी ने लालच की खातिर सुलगाई, आग अब कुछ धीमी पड़ गयी थी, देखने को भीड़ उमड़ रही थी, एक लाश सुहागन मरी थी, कंगन-साड़ी-सिन्दुर में लिपटी, एक और बहू दहेज की सूली चड़ी थी, एक और बहू .....................।