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महामारी

akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक करोना की दूसरी लहर के समय विश्व में फैली इस महामारी की विभीषिका को देखकर लिखी थी 45612 0 Hindi :: हिंदी

**महामारी** 

ये कैसी महामारी की
आंधी चल रही है
असमय आई मौतों से 
जिंदगी डर रही है ।

अस्पतालों में मरीजों
के लिए जगह भी नहीं है 
बिना सांसों के अस्पतालों में 
मौत हो रही हैं।

चीखों से अस्पतालों की 
दीवारें कंप रहीं हैं
दवाइयों की कालाबाजारी
शर्मशार कर रही है।

आपदा की इस घड़ी में
जो धन कमा रहे हैं
ऐसे चांडालों की
इंसानियत मर चुकी है।

रिश्ते नाते दोस्तों की 
*न*धन की चल रही है 
बाडी प्लास्टिक में लिपटकर
बिना कफ़न जल रही है।

इंसा की उखड़ती सांसें
तांडव मचा रही हैं 
हैसियत है क्या हमारी
हमको बता रही है

घर में है क़ैद ज़िन्दगी
रौनक नहीं रही है
आपस में मिलने जुलने से
जिन्दगियां डर रही हैं।

सूनी शहर की गलियां 
रो रो कर कह रही हैं 
घर में ही रहना इंसा
मौत टहल रही‌ है ।।

जिंदगी अच्छे से जी लो 
ये जिंदगी कह रही है
यहां ख़ुशी से रहें सब 
 ये दुआ कर रही है।

ये कैसी *महामारी* की
आंधी चल रही है
असमय आई मौतों से
जिंदगी डर रही है।।

रचयिता ---अखिलेश श्रीवास्तव
               जबलपुर मध्यप्रदेश

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