SHAHWAJ KHAN 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक पिता की मेहनत, पिता से उम्मीद, फादर्स डे स्पेशल, पिता के लिए कविता 89603 1 5 Hindi :: हिंदी
इस कविता के माध्यम से पिता की मेहनत और उस मेहनत से परिवार ओर बच्चों की उम्मीद का एक वाकया लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। की किस तरह एक पिता दिन रात मेहनत करके अपने परिवार को पालता है और एक पिता का हमारी जिंदगी में कितना महत्व है। तो कविता कुछ इस तरह है कि तपती हुई धूप में बदन मेरा जल रहा है क्या करूँ साहब इसलिए ये घर मेरा पल रहा है। सर पे मेरे बोझ की गठरी कांधो पे जिम्मेदारी है लाख दिए ज़ख़म अपनों ने न हिम्मत हमने हारी है। ख़ुद्दारी की चादर को कफन समझ कर ओढ़ लिया है थके हुए कदमों ने मेरी मंजिल को भी मोड़ लिया है। अरे रुक जाता मैं मगर ये दिन ढल रहा है क्या करूँ साहब इसलिए ये घर मेरा पल रहा है। रात के ठंडे साये में जब लौट के घर मैं आता हूँ मेहनत की रोटी का टुकड़ा मिल जुल कर जब मैं खाता हूँ। खुश होते है बच्चे मेरे जो दिन में भूख से रोते थे फिर आस लगा कर के कल की बो चैन से घर मे सोते है।............ क्यों क्योंकि मैं बाप हूँ इसलिए उनकी उम्मीदों का दिया जल रहा है। क्या करूँ साहब इसलिए ये घर मेरा पल रहा है। तपती हुई धूप में बदन मेरा जल रहा है क्या करूँ साहब इसलिए ये घर मेरा पल रहा है।