SACHIN KUMAR SONKER 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य GOOGLE शीर्षक (रोटी) 80731 0 Hindi :: हिंदी
शीर्षक (रोटी) मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर) दर दर भटकता इन्सान है रोटी के लिये परेशान है। कोई घी लगाकर खाता है , तो कोई सूखी ही चबाता है। रोटी कमाना अगर इतना आसान होता , तो क्या भूखा इन्सान सोता। एक रोटी ही एैसी जो ना रात में सोने देती है, और ना दिन में रोने देती है। कोई रोज रोटी बाहर फेक कर आता है। कोई रोटी की चाह में भूखा ही सो जाता है। कोई पेट भर कर भी नहीं सो पाता। कोई खाली पेट ही सो जाता है। एक भूखा ही रोटी की कीमत जानता है, वो भूखा तो रोटी को ही भगवान मानता है। सोना चाँदी सब मिट्टी है, तन की आग रोटी से ही मिटती है। रोटी का कोई मोल नही है, रोटी से ज्यादा कोई अनमोल नहीं है।