ग़ज़ल-11
बस्ती में बेक़सों का सहारा नहीं कोई
लगता है यहाँ वक़्त का मारा नहीं कोई
मौत के मारों को मिले हैं कान्धे बहुत
ज़िन्दगी के मारों का सहारा नहीं कोई
ख़ुशियाँ तो बाँट ली गैरों ने भी हँसकर
करे यहाँ ज़ो गम़ का बँटवारा नहीं कोई
पूछ लेंगे समन्दर से ऐ दरिया हम कभी
क्या तुझमें कुछ अश्क़ हमारा नहीं कोई
नफ़रत भी ढ़ल गई ‘शशि’ मोहब्बत में
ऐ मेरी ग़ज़लों तुम-सा प्यारा नहीं कोई
लेखक- डाo सच्चितानन्द ' शशि'