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छलते कोई भी यहां-बनते फिरते बाज पहले जैसे अब कहां

संदीप कुमार सिंह 11 Jul 2023 कविताएँ अन्य मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3783 0 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद)
छलते कोई भी यहां, बनते फिरते बाज।
 पहले जैसे अब कहां,छलियों का है राज।।

पहले जैसे अब कहां,चैन रैन आराम।
चिन्ता सोते जागते,फिर भी हो बदनाम।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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