ज़िंदगी तोहफा तुझे अनमोल देना चाहता हूँ
दुश्मनों को दोस्त का मैं रोल देना चाहता हूँ
साँप तेरा मन में, मुझको मार पाए दम नहीं है
मैं मधुर रस ज़िंदगी में घोल देना चाहता हूँ
लौटकर जाए न कोई देखकर घर बंद मेरा
इसलिये मैं द्वार को खोल देना चाहता हूँ
आग की लपटों की ज़द में हूँ, झुलसना है मुझे भी
हो न हो, कल इसलिये सच बोल देना चाहता हूँ
शील हरता बेटियों की, दो सजा फाँसी की उसको
मैं ‘आशु’ इसके लिये हर मोल देना चाहता हूँ
आशुतोष पांडेय