Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

उड़ता परिंदा

Samar Singh 02 Apr 2024 गीत दुःखद गर्मी का मौसम और परिंदे को पीने को पानी नहीं मिल रहा है, न बैठने को छाँव। 2941 0 Hindi :: हिंदी

मौसम की बेरुखी, 
दिल हुआ दुखी। 
ढूँढती निगाहें, 
मिलती नहीं राहें। 
प्यास ऐसी लगी, 
चाह ऐसी जगी। 
क्या बचूँगा मैं नहीं जिन्दा, 
मैं बेघर उड़ता परिंदा। 

हर जगह रेत ही रेत, 
खाली पड़े सब खेत। 
मिलती नहीं पानी की एक बूँद, 
जहाँ जाऊँ मैं कूद। 
ये गर्म लू, 
जीवन नर्क सी बू। 
प्रकृति बना है कैसे दरिंदा, 
मैं बेघर उड़ता परिंदा। 

रचनाकार-- समर सिंह " समीर G "

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

ये खुदा बता तूने क्या सितम कर दिया मेरे दिल को तूने किसी के बस मैं कर दिया वो रहा तो नहीं एक पल भी आकर टुकडें- टुकड़ें कर दिये ना विश्वा read more >>
Join Us: