Kranti Raj 29 Jun 2023 कविताएँ समाजिक 5784 0 Hindi :: हिंदी
बेकरार हुआ मौसम एकरार करने आया हम खुशनशीव है,वो हमें भींगाने आया है काली घांटा छा रही बादल हवाओ ने दौडाया कहीं पडती छोटी बुँदे जमीं को भींगाया है पागल हवाओ ने कहा घर में छुप जाओ जरा कोयल बोल रही कुँ-कुँ मोर पंख फैलाया है चिडीयां बैठी डाल पर घोसला तो बनाया है पागल हवा की झोकों ने घोसला ही उडाया है नदी कहती मुझ मे दम सागर कहा किनारा है मदहोशी नाविक को देखो डेंगी थाम न पाया है ! कवि-क्रान्तिराज बिहारी गिनांक-29-06-2023