Sudha Chaudhary 26 May 2023 ग़ज़ल दुःखद 5566 0 Hindi :: हिंदी
मेरी गहराई ना समझे समंदर कोई, रहे हालात से मजबूर ना मुकद्दर कोई। सामने से ही चले मिट गए पिछले साये, बुझा ले आग सीने की ना हो बंदिश कोई। तमाशा बन के जिये तो जीना कैसा, हजारों गम मेरी तन्हाइयों से चुरा ले कोई। बड़े बेबाक से फिरते थे तसव्वुर में मेरी, भटक रहे हैं जहां से बचा ले कोई। सुधा चौधरी बस्ती