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मन की मनमानी

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत #Ambedkarnagar Poetry#Rambriksh kavita#man ki manmaani rambriksh#man per kavita rambriksh 58922 0 Hindi :: हिंदी

कविता-मन की मनमानी

मन की मनमानी
खुद लिख जाती है
अपनी कहानी,
मन से ही जीते हम
मन से ही हारे
मन के आगे न
चलती जुबानी, मन की मनमानी-----

मन चुप न बैठे
न माने किसी का
किसी को न देखे
न सुनता किसी का
अपनी ही राग 
धुन अपनी सुहानी, मन की मनमानी--------

मन करता छूं लूं
चूंमू गगन को
धरा पर उतारुं
ये चंदा सितारे
मन ठान ले गर
अपने पर आकर
हठी मन के आगे
ये दुनिया भी हारे
मन ही दिवाना है
मन ही दिवानी, मन की मनमानी---------

मन ही चुराता है
मन की निशानी
मन मीत बनके
ही करता नदानी
कभी नाच जाता है
मन मोर बनके
अभी तोड़ जाता है
यारी पुरानी
मदमस्त चंचल
पुरुवा पवन सा
चले गुनगुनाते
वह ग़ज़लें तुफानी,  मन की मनमानी---------


मन ही मन में
मुस्कुराना गज़ब था
मन अपने मन का
मनमाना अजब था
चला दूर जाता फिर
पल भर में आता
कहीं पर न रुकता
ठहरता कहीं पर
मन मन में बसता
ठिकाना गज़ब था
कभी बात मन की
किसने है जानी!, मन की मनमानी---------

मन मन का राजा है
मन मन की रानी,मन की मनमानी---------


रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर।

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