Shubham Kumar 30 Mar 2023 आलेख समाजिक (Pita ka fatkara Prem) 30161 1 4 Hindi :: हिंदी
मेरे बेटे तुम मुझे माफ कर देना, मैं तुम्हारा बहुत बड़ा अपराधी मैं हूं मेरे बेटे! मैं कितना खड़ूस पीता हूं, मैं कितना चिड़चिड़ा हो गया हूं, मैं तुम्हें डांट फटकार नहीं लगाना चाहता,- लेकिन मैं तुम्हारी गलतियों को अनदेखा नहीं कर सकता, कोई पिता ऐसा नहीं कर सकता, मैं तो तुम्हारे अंदर, परिवर्तन देखना चाहता हूं, मैं तुमसे नफरत नहीं करता, बल्कि तुम्हारे गलतियों से करता हूं, तुम नहीं जानते, इस पिता के पास दो दिल है मेरे बेटे, इसके सीने में दो दिल धड़कता है, पहला जब तुम्हारी गलतियों को, हम देखा नहीं करता है, हर तुम्हें दो चार थप्पड़ भी जड़ देता है, और कठोर सजा भी देता है, तुम्हें फटकार लगाने से भी बाज नहीं ,आता, क्या एक पिता ऐसा हो सकता है, मैंने तुम्हारी गलतियों पर, कितनी बार तुम्हारी निंदा की है( लेकिन तुम नहीं जानते मेरे बेटे) मैं तुम्हें डांट लगाने के बाद, खुद को कोसता हूं किसी अपराधी की तरह, खुद को कभी गालियां भी देता हूं, खुद को फटकार भी लगा देता हूं, और किसी मासूम बच्चे की तरह( तुम्हें डांट लगा कर) किसी कोने में जाकर रोता हूं, अब तुम्हें ना देख कर, कभी-कभी तो दिल बहुत घबराता है, मन बेचैन हो जाता है, आत्मा व्याकुल हो जाते हैं, तुमसे बातें करने के लिए, हमेशा कोई ना कोई, बहाना ढूंढता हूं, प्रतिदिन रात को, सोने से पहले, मैं दबे पाव तुम्हारे कमरे में- प्रवेश करता हूं, तुम्हें जब तक सोता नहीं देख लेता, तब तक मन शांत नहीं होता, और आंखें खुली रहती है कुछ देर के लिए,( जब तुम छोटे थे मेरे बच्चे) तो याद है मैं तुझे डांट लगाता था, तुम बिना खाए कभी स्कूल चले जाते थे, पर मैं तुम्हारा खाना लेकर, किसी घोड़े की तरफ भागता हुआ स्कूल की तरफ जाता था, तुम्हें प्रतिदिन_, अपने कंधे पर बैठाकर, स्कूल ले जाता था- जब तुम ने पहली बार, मुझे हक लाते हुए शब्दों से पापा बोला था, वह शब्द अधूरा था मेरे बेटे_ लेकिन वह अपने आप में पूरा था मेरे बेटे, उस पल कोई एक पिता भला कैसे भूल सकता है, वह मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल था, मैंने आज तक अपने लिए इतनी मीठी शब्द नहीं चली(, जब मैं दिनचर्या की जिंदगी में) काम करते हुए थक जाता था, लोगों से मिलने वाली निंदा से मेरा मनोबल, टूट जाता था, साहस कम पड़ जाते थे, और मेरे सपने कमजोर हो जाते थे,( जब मैं घर लौटता था) तो मेरे घर में, एक मासूम सा नन्हा सा राजकुमार था. जो मुझे देखते हैं दौड़ कर सीने से, लिपट जाता था, और उसे देख कर उसे सीने से लगाकर, एक पिता अपनी सारी थकान भूल जाता था, तब उसका मनोबल बट जाता था, उसके सपने मजबूत हो जाते थे,( वह अपने आप को ,हर दिन अपने को,) बेहतर पाता था" तुम नहीं जानते, कामयाबी के पीछे, बुराइयां नहीं चला करते, नहीं तो लोग कामयाब नहीं होते, कल तुम्हारा पिता तुम्हारे पास, नहीं होंगे, लोग तुम्हारी गलतियां पर, तुम्हें गालियां देंगे, एक पिता अपने बच्चे को, कामयाब देखना चाहता है, ईश्वर करे कि तुम कामयाब रहो, मैं दिल से यही दुआ करता हूं, आज मेरे पास इतना समय नहीं, मैं अंतिम सांसे गिन रहा हूं, आप तो मेरे पास नहीं, मुझे मरने का गम 😪🔲 दुख तो इस बात का है कि मैं तुमसे, आखिरी वक्त भी प्रेम न कर पाया, यह पिता तुम्हें आखरी बार" देखना चाहता है मेरे बेटे" ऐसा लग रहा है जैसे मैं आज भी, तुम्हारी गलतियों पर, तुम्हें दो चार थप्पड़ लगा लगा देता, लेकिन मेरे पास इतना_ वक्त नहीं, मैं तुमसे इतना ही कहना चाहता हूं, कि मैं कभी गलत नहीं था, बस तुम्हें कामयाब देखना चाहता हूं, तुम नहीं जानते मेरे बेटे, जब तुम स्कूल में गाना गा रहे थे, तो लोग तुम्हारी प्रशंसा कर रहे थे, और मैं चुपके से उन सब की बातें सुनकर, मेरी आंखें भर आई थी, ऐसा लग रहा था, जैसे मैंने ही सब कुछ पाया है,( तुम्हारे लिए तुम्हारे कामयाबी) शायद मैंने ना रहता होगा, लेकिन मेरे लिए) बहुत रहता है मेरे बच्चे, तुम हमेशा कामयाब रहो, ईश्वर से दुआ करता हूं,( अध्याय समाप्त) मैं शुभम कुमार, यह मेरी रचना है, अरे इसको मैं हिंदी प्रतिलिपि पर, भी प्रकाशित किया है_ लेकिन कुछ अलग से, मैं शायद तेरे को धन्यवाद देना चाहता हूं, जम्मू जैसे छोटे-छोटे कलाकारों को, अपने लेख, प्रसारित करने के लिए हमें मौका देते हैं, आज सहित दिल्ली का ही देन है कि मैं आप लोगों के साथ, कनेक्ट हो पा रहा हूं, अगर मेरी रचना अच्छी लगती है, तो आप कमेंट जरूर करें, मैं आप सब को लाख-लाख धन्यवाद देना चाहता हूं, इस रचना को पढ़ने के लिए शुक्रिया,
1 year ago
Mujhe likhna Achcha lagta hai, Har Sahitya live per Ham Kuchh Rachna, prakashit kar rahe hain, pah...