संदीप कुमार सिंह 10 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढकर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे। 6351 0 Hindi :: हिंदी
आने से उसके छा गई एक नशा, हवा भी चली कुछ अंगड़ाई लेते हूए। मन में भी हलचल हुई कुछ अजीब सा, आँखों में वही चेहरा जम गई काजल सा। धीरे-धीरे लब पे भी बदमाशियां आया, गीतों में हमने भी दिल की बात कह दी। उसने भी एक गहरी मुस्कान दी, प्यार ए इजहार कर दी। प्रेम भरी बातों का ही जलवा रहा, दिन से लेकर रात चली आई। भविष्य के सपने फ़ूलों सा था सामने, और अब था कुछ नया कर गुजरना। अब हम एक से हुए दो, दोनों का था तीव्र विचार। करना था कुछ अधिकार, सबक सिखाना था गुंडों को। शुरू हुआ प्यार के साथ-साथ तकरार, दोस्तों के लिए हम दिलदार। दुश्मनों के लिए हम तलवार, ऐसा ही हम दोनों का विचार। अभिमान में था कुछ लोग चूर, अपने को ही समझता था शेर। और करता था गुनाह, लोगों वो कर के गुमराह। हम दोनों का शुरू हुआ एक अभियान, पहले तो नशा को खत्म था करना। फिर बेईमानों को करना था खत्म, जीने का एक लिए हम इल्म। अब सब जानने लगा है मेरा इरादा, होने लगा है भ्रष्ट लोगों को काफी डर। भ्रष्टाचार को मिटाना है जड़ से, एक नया विश्वास जगाना है फिर से। जहाँ अनुराग की खुशबू होगी, और एकता की बहार होगी। गुलाबी धूप में सब सुरभित होंगे, और अविष्कार की पहल होगी। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....