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कच्चे-कलवे

Rahul verma 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत कच्चे- कलवे /राहुल वर्मा/ नीर 34031 0 Hindi :: हिंदी

                       
एकलव्यी बाण मारती थी वो मेघदूती बाण मार रही है तू,
वो तो शिरीष का था फूल जो टूट गया झट से,
अब टहनी जो बची है उसे भी तोड़ रही है तू।

क्या कसूर था मेरा क्या कसूर था तेरा,
तू सूरज बनकर गयी तो मैं सितारा बन चला,
जब चांद में था दाग तो फिर क्या दोष था मेरा।

मेने समझा है तुम को, तो क्यो पढ़ रही है तू,
तू गणित है मेरी जिसका हल किया मेने,
अब तू मेरी साइको को छोड़ हिंदी बांच रही है तू।

प्यार करता हूँ तुमसे, नफरत कर रही है तू,
वो गड्ढे हुए थे मुर्दे जो उखड़ गए खुरपी से,
अब कच्चे कलवो को भी उखाड़ रही है तू।
                                                 

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