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बेसुध बहे संसार सागर की धारा

मोती लाल साहु 12 May 2023 शायरी समाजिक बेसुध बहे संसार- सागर की धारा, बेसुध बह जाता वह जो संभलना पाता- सत्य की धारा माया भी बहती जाती- अमृत की धारा बिष भी बहती जाती- जो रम जाता, योग उसी का बन जाता- संसार- सागर तैर जाता, वही जन योगी कहलाता। 5740 0 Hindi :: हिंदी

बेसुध बहे-
संसार- सागर की धारा!

बेसुध बह जाता-
वह जो संभलना पाता 

सत्य की धारा- 
माया भी बहती जाती 

अमृत की धारा-
विष भी बहती जाती 

जो रम जाता- योग, 
उसी का बन जाता-
संसार सागर तैर जाता
वही जन योगी कहलाता !!
-मोती

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