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गजानन माधव मुक्तिबोधः

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख अन्य Literature 85113 0 Hindi :: हिंदी

13 नवंबर 1917 को गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म श्योपुर (मप्र) में हुआ था। उनके पिता माधवदास पुलिस विभाग में निरीक्षक थे। उनकी माता श्रीमती पार्वतीबाई सुशिक्षित महिला थी। उनके दादा गोपाल राव भी ग्वालियर रियासत में पुलिस विभाग में थे। वे बड़नगर, उज्जैन-जिला के मिडिल स्कूल में 20 वर्ष की अल्पायु में शिक्षक बन गए। तत्पश्चात वे शुजालपुर, उज्जैन, कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बैंगलुरू, काशी और जबलपुर में काम किए। वे आकाशवाणी व पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। उन्होंने 1948 में सूचना एवं प्रकाशन विभाग तथा आकाशवाणी-नागपुर में काम किया। उन्होंने तब के साप्ताहिक ‘नया खून’ में संपादकीय दायित्व का निर्वहन किया और सभी विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। उनमें माक्र्सवादी चिंतनधारा प्रभावित होती थी, लेकिन उन्होंने इसे अपनी लेखनी का आधार नहीं बनाया। इसके बजाय वे समदर्शी विचारधारा को आधार बनाकर लेखनकार्य करते रहे। उन्होंने महात्मा गांधी, वीर विनायक दामोदर सावरकर, छत्रपति शिवाजी जैसे महापुरुषों पर भी समदर्शी भाव से लेखनी चलाई और वास्तविकता को उजागर किया। वे ‘भारतः इतिहास और संस्कृति’ के रचयिता थे, जो विवादित हो गया था।
1958 में गजानन माधव मुक्तिबोध राजनांदगांव के दिग्विजय काॅलेज में प्राध्यापक बन गये। यहाॅं उन्होंने अध्यापन के साथ-साथ खूब साहित्यिक लेखन भी किया। इसमें उनकी पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का सहयोग भी मिला। वे अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच व अन्य यूरोपीय भाषाओं के साहित्य की भी जानकारी रखते थे। उनकी कृतियाॅं हैं-चांद का मुंह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, सतह से उठता आदमी (कथा-साहित्य), कामायनी एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक की डायरी। उनके जीवनकाल में केवल ‘एक साहित्यिक की डायरी’ प्रकाशित हुई थी। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पहले कविता-संकलन ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ का प्रकाशन 1964 में किया गया। 1962 के पश्चात् वे राजनांदगांव मे बीमार रहने लगे। इसी अस्वस्थता के चलते 11 सितंबर 1964 को उनका निधन नई दिल्ली में हो गया। दिग्विजय कालेज परिसर, राजनांदगांव में उनका स्मारक बनाया गया है, जो उनकी रचनाधर्मिता को उजागर करता है।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।




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