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वरिष्ठ नागरिक का जीवन

चंद्र प्रकाश 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक वरिष्ठ नागरिक का जीवन स्तर सुधरा है किन्तु पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर उनको समय नहीं दिया जाता ना ही उनकी बात को महत्व दिया जा रहा है I ये उपेक्षा उचित नहीं है I 94652 0 Hindi :: हिंदी

                                 वरिष्ठ नागरिक जीवन गति

उदगार बताने, याद दिलाने, , ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II
आँखों की लुप्त हुई रौशनी को रौशनी, बंद हुए कर्ण को ध्वनि  देने आया हूँ
कमजोर हुई को यादास्त को याद दिलाने, रुकी हुई चाल को गति देने आया हूँ,
तुम्हारी सुनने, तुम्हारे घुटनों की कल-कल सुनने आया हूँ,
खमोश वृद्धजन को मै उत्साह भरने,  आशीर्वाद लेने आया हूँ,
उदगार बताने, याद दिलाने, , ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II1II
                                              वो  दिन भी याद करो ! थाली बजी,  जब संसार में शरण लेकर तुम  रोए थे,
                                             नाम करण हवन करवाया बहन- बुआ भेज पत्र सखा सभी बुलयाये थे
                                             तुतलाती जुबान,  घुटनों के बल मस्तानी चाल आपकी,
	                                     जब बाल सखा आप कहलाए थे, 
		                             जन्म स्थल था जहाँ, आज हम हैं कहाँ, बालपन की याद दिलाने आया हूँ
                                             उदगार बताने याद दिलाने, ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II2II

आपकी पहचान कभी पुत्र थी, तो कभी बन पिता फ़र्ज सभी निभाए,
मात- पिता के आज्ञाकारी बने संस्कारी,अध्यापक की मार भी खाए
कभी बालपन, कभी लड़कपन, भद्रपुरष बन कार्यालय की याद आये,
शवस्थ  जीवन शैली, आज बनी पहेली, आज गुजरे वक्त की याद तरसाए
संस्कृति- संस्कार, कोई लौटा दे युग आपका, दिल अपना भी ललचाये
नया युग, नई  पीढ़ी के नए अन्दांज, दुःख अपना भी आज बताने आया हूँ,
उदगार बताने, याद दिलाने, ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II3II

                                               कभी जवान थे,  क्या अरमान थे, दिल से मनचले बेईमान थे, लकिन भले इंसान थे,
                                               बताते स्कूल में, होते सिनेमा घर हाल में,  तुम कितने भोले और नमकीन थे,
                                               उड़ते आसमान में, खलते जमींन में,
                                               धुलऔर तूफान में क्या दिन थे, तैरते तालाबों में, बताते सैलाबों में,
                                                रहते ऊँचे ख्याल ओर खवाबों में, भूले दिन याद दिलाने आया हूँ
                                                उदगार बताने, याद दिलाने, ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II4II

याद करता हूँ ! कभी मेंरी जवानी जवान होती थी, आज नींद नहीं आती
कभी वह  बिना नींद भी सोती थी, आज कोई हमे बुलता नहीं,
कभी मिलने की फुर्सत भी ना होती थी, कभी मैं बिना आसुंओं के रोती थी,
कभी अधिकार ना मिले तो, छिनने की हिमत होती थी,
आज निढ़ाल हुए, बेहाल हुए वृद्ध जानो की कहानी सुनाने आया हूँ
उदगार बताने, याद दिलाने, ठहरी जिन्दगी को गति देने आया हूँ II5II
                                                                               चन्द्र प्रकाश 
                                                                          केशव पुरम, दिल्ली- 35 
                                                                               04.10.22   

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