Divya Kumari 19 Mar 2024 कविताएँ समाजिक 2423 0 Hindi :: हिंदी
गुरू माँ जो एक नहीं सौ सौ बच्चों को अपना सा मानती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं सब पर एक जैसा प्यार लुटती अपनत्व से सबको पास बुलाती गलती करने पर डांटती तो समझाती भी हैं हमें विषय के साथ साथ व्यवहार भी सिखाती हैं। अपने प्यार से सबको अपना बनती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं कभी कक्षा तो कभी वृक्ष के पास हम greet करते वो हमें अपनो बच्चे जैसे treat करते ऐसे ही नहीं कोई बिना गर्व धारण किए माँ बन पाती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं वो माँ नहीं गुरु माँ कहलाती हैं