संदीप कुमार सिंह 11 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4391 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) चिन्ता सोते जागते, फिर भी हो बदनाम। पहले जैसे अब कहां,चैन रैन आराम।। पहले जैसे अब कहां,पानी हवा जुगार। मिले मिलावट में सभी,छीने पर अधिकार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....