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झूठी उम्मीदों को लेकर-आश लगाए बैठे थे

Sudha Chaudhary 11 Aug 2023 कविताएँ अन्य 5610 0 Hindi :: हिंदी

झूठी उम्मीदों को लेकर
आश लगाए बैठे थे।
हम उतने काबिल थे ही नहीं
जितने की बताये बैठे थे।

आधार तुम्हारे मन का था
सहज भाव सा जीवन था
अनुराग भरी इस बगिया में
फूल लगाए बैठे थे।

कितने युग बीत गए
अपने ही स्पंदन में
मुट्ठी से फिसल गया पल में
जो बात छुपाए बैठे थे।

हरि की पीड़ा जब साथ रही
मैं क्या थी जो अब नहीं रही
अभिमान भरे उन शब्दों का
जब जाल बनाए बैठे थे।

सुधा चौधरी
बस्ती

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